सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

पांडे जी के बाराती

१९९४ में मध्य प्रदेश के दमोह में रहकर काम करते हुए मुझे दो साल हो चुके थे, और नई जगह अब पुरानी और अपनी लगती थी। बुन्देलखंडी बोली सीख चुके हम इसे बड़े मज़े ले लेकर बोलते थे। जरुरत पड़ने देर रात तक काम निपटाना, किसी नए काम के लिए खुद ही आगे आना, और कुछ छोटे मोटे अच्छे काम करने के बाद मेरी तत्कालीन कम्पनी के बॉस ने मुझे प्रोमोट करके शाखा प्रभारी बना दिया था। हम सभी स्टाफ अलग अलग जगहों के रहने वाले थे लेकिन दमोह में एक ही बड़े घर को किराये पर लेकर साथ रहा करते थे, इससे आपस में सामंजस्य बना रहता था और काम पड़ने पर एक दुसरे के सुख दुःख में भी हम काम आ जाया करते थे।
मोटा सा लेकिन पेंसिल की नोक की तरह मुच्छ रखने वाला एक राजकुमार सिंह था जो बात बात पे अपने पैतृक गाव गोंडा में रहने वाली अपनी पत्नी की याद किया करता और हमें बोर किया करता। एक डॉक्टर संजय गौर भी थे , सीधे सहज से दिखने वाले डॉ गौर कम्पूटर हंडल किया करते थे, और वो हमें कभी नहीं समझा पाए की जब वे डॉ थे तब हमारे साथ वहा क्या कर रहे थे। छतरपुर के गोरे गोरे से भावुक दिखने वाले गोविन्द दुबे और नौगाँव के काले कलूटे पर दमदार नामदेव भी थे, एक और शख्स था जो था तो हमारा पीयून लेकिन जब भी थोड़ी सी पी लेता था तब खुद को सी इ ओ और बाकी सबको अपना पीयून समझता --- नाम था " जंगली प्रसाद यादव" काला इतना के अँधेरे में अपनी तरफ चलता हुआ आये तो सिर्फ दो सफ़ेद आँखें ही दिखाई देती थी, बाकी चेहरा रात के अँधेरे से मैच कर जाता था। हमारी रोज़ की तय दिनचर्या थी... रोज सुबह साथ में काम पर निकलते , दिन भर ऑफिस में काम में लगे रहते और देर रात को जब घर लौटते तब तक सभी दुकाने बंद हो जाया करती थी। फिर जो भी रूम में पडा होता वोही साथ मिलकर बना खा लेते या कही होटल में चले जाते। बिच बिच में भारी वर्क लोड से ताजगी के लिए छोटी पार्टी भी कर लेते और तनाव, थकान मिटा लेते।
एक दिन सुबह ऑफिस में एक दुबला पतला सा नौज़वान आया , सामने से काउंटर पर पूछ ताछ करने के बाद मेरी तरफ आया और परिचय दिया की उसका नाम " अनिल पाण्डेय " है , नया नया ज्वाइन हुआ और उसे मेरे पास मेरी ब्रांच में भेज दिया गया है। लखनऊ के पास पडरौना का रहने वाला अनिल एक बैग लिए था , हलकी मुच्छ्ह, रंग गोरा था, हम सभी ने एकमत से तय किया और उसे भी अपने साथ ही रहने को कह दिया...जोशीले और मेहनती से लगने वाले अनिल के साथ काम में मज़ा आने लगा था। उसने भी जल्दी ही सभी से अपने को जोड़ लिया था, खाने पीने में भी उसकी आदते बाकि सबसे बिलकुल मिलती थी। और मेरी अपेक्षाओ के अनुरूप भी मेरे जानने वाले पांडे, मिश्र, त्रिपाठी, चौरसिया, बाजपाई, शर्मा, दुबे जैसे श्रेष्ठ नाम वाले लोगो की ही तरह सब कुछ खा जाने वाला पंडित निकला था। ये सभी हाई क्लास के बेवडे और खूंखार नॉन वेजी थे।
एक दिन हमारी फिल्ड कार्यकर्ता सुनील चौरसिया जी ने अपने साथ एक लड़की को ऑफिस में लेकर आये, परिचय कराया की उसका नाम भावना है और उनकी नयी असिस्टंट है और ऑफिस में बैठकर उनकी टीम के पेंडिंग काम निप्तायेंगी।
उस दिन तो ऑफिस में गजब की सज्जनता दिखाई दी, हर कोई एक दुसरे को बड़ी शालीनता से पुकारता और काम में सबसे तत्पर दिखाई देने की कोशिश कर रहा था, और बार बार आँखे फाड़ फाड़ के भावना को ही घूर रहे थे, दर असल वो दिखने में कमाल की थी। इतनी गजब की बला को हम किसी ने कभी नहीं देखा था, घुन्गुराली जुल्फे....चक गोरे गालो पे पड़ते डिम्पल , दुबली पतली कमर, अच्छी ऊंचाई, और आवाज में रेखा जैसी कसक, कपडे पहनने और चलने के हुनर में अपने समय से १० साल आगे , ऑफिस में तो जींस , टी शर्ट, खुबसूरत लहंगे तक पहन कर चली आती , और बाहर तो शहर में हाफ निक्कर में ही निकल पड़ती, इस पर उसके बर्ताव का खुलास पण ऐसा, की जिस किसी से बात करे तो बन्दा गलतफहमी का शिकार हो जाए । जल्दी ही १८ साल की भावना ऑफिस का केंद्र बिंदु बन गई, हद तो यहाँ तक हो गई, की कमबख्त जे पि और आर के ( जंगली प्रसाद और राजकुमार ) दोनों भी दिन भर उसी के पास मंडराते और खुद को बार बार कुवारा कहते फिरते, सबसे कम उम्र होने का फायदा हमें नहीं मिल पाता क्योकि " शाखा प्रभारी " होने के नाते ब्रांच की पूरी कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी हम पे आन पड़ती , इसलिए कोई भी नियमो के बाहर न जा पाए इसका मुझे ही ध्यान रखना पड़ता। और में दुसरो से ज्यादा मच्योर दिखने का प्रयास करता रहता। अपने पागल बन चुके सहकर्मियों के लिए कार्यालय में लगे आदर्श विचारो के नोटिस बोर्ड पे एक बार लिख ही डाला " भावनाए हमें कमज़ोर बनाती है, कृपया अक्ल से काम लो " भावना ने अपना मॉडल की तरह एक शानदार खुबसूरत एल्बम बना रखा था, उसमे से फोटो निकाल के सबको अपना कातिलाना अंदाज़ बताती।
एक रविवार की सुबह हम देर तक सोने की तमन्ना लिए अध्निंद में पड़े थे, सभी लड़के अपने स्टाइल में लम्बे से लगे एक बिस्तर पे गर्मी के दिनों में सिर्फ कछ्चे पहन के सोये थे, किसी के डोर बेल बजाने पे आधी नींद में जे पि ने दरवाजा खोल दिया और जैसे ही सामने देखा तो चीखते हुए अन्दर की तरफ भागा , मैंने उठके देखा तो सामने भावना हाफ निकर और टी शर्ट पहने हाथ में वोली बाल लिए चली आई थी, अपनी अपनी चादर लिए सब शर्मिंदा से भाग खड़े हुए और फिर ठीक से कपडे पहनके लौटे । लेकिन वो बिना किसी अहसास के सबसे बात करती रही, धीरे धीरे वो हम सभी के साथ बहुत समय तक अकेले रहा करती । हम भी धीरे धीरे उस से ज्यादा मज़ाक और छेड़ना कम करने लगे थे, उसका सबसे बड़ा कारण जो हमें मालूम पडा था की शहर के कई खूंखार गुंडों को उसने अपना भाई और न जाने क्या क्या बना रखा था ? और खुद उसके सगे भाई की किसी ने गैंग वार में हत्या कर डाली थी ।
थोड़े ही दिने में हमने कुछ बदलाव देखे की अनिल पाण्डेय थोडा गंभीर सा लग रहा था और भावना भी ! कुछ दिनों में बात खुलने लगी की अनिल और भावना के बिच प्यार पनपने लगा है, भावना के बारे में जे पि और आर के बार बार मज़ाक करते और अनिल लड़ पड़ता, आर के अनिल से चिढ़कर कहता " बेटा अनिल, सोच ले , सुधर जा, न जाने कब कौन कहाँ से आएगा और तेरे गन लेकर तेरे खोपड़ी का निशाना ले लेगा, "
पर पाण्डेय जी तो लगता था की फँस गए थे, बचने की कोशिश तो की होगी पर जम नहीं सका होगा, जब अनिल कुछ ज्यादा ही गुस्सेल हो गया तो मैंने उससे पुछ लिया, उसने बताया की " बड़ी उलझन है शादी न करू तो दिल टूट जायेगा, और कर लू तो लखनऊ में घर वाले मार भगायेंगे, भावना शादी के लिए कह रही है, बात उसके खूंखार घरवाले तक भी पहुँच गई है, आप ही बताओ क्या करू ? " उस रात बहुत सोचता रहा किन्तु मुझे कुछ नहीं सुझा, लगा की पांडेजी ने अपने बचने के रास्ते बंद कर लिए थे , अगले दिन मैंने उससे पूछा की शादी करोगे ? अनिल रोते रोते बोला " हां" लेकिन शादी होगी कैसे, गाव से तो कोई नहीं आयेगा और यहाँ कोई नहीं है मेरा । मैंने जब देख लिया की लड़का लड़की दोनों तैयार है तो बस तय कर लिया की अब दोनों की शादी कराना ही है, सभी लडको की मीटिंग लेकर एलान कर दिया की अब पांडेजी की शादी करना है, हम सब मिलकर शादी की तैयारी में लग गए, इस के लिए सबने एकमत से मुझे अध्यक्ष चुन लिया, बाकायदा सबने मिलकर एक दिन भावना के घर डरते डरते पहुंचे, उसकी माँ और पापा से मिलकर लड़की का हाथ मांगा, ठीक वैसे ही जैसे फिल्मो में होता है, बड़े ही स्टाइल से भावना के खूंखार बूढ़े बाप को समझाया, उसने भी देखा की " मुफ्त में स्मार्ट सा दूल्हा बिना दहेज़ के घर में लड़की मांग रहा है थोडा नाटक करने के बाद हां बोल दिया, " दिन और समय तय हुआ, सभी तैयारियों की बाते भी हम सब ने मिलकर कर ली, उन दिनों हमने ऑफिस में काम कम और शादी की तैयारिया ज्यादा की, रात और दिन करके कमाए गए बोनस और ओवर टाइम के पैसे एक जगह इकट्ठे किये, महीने की पगार होने पे भी हमने एक बड़ी रकम चंदे से जमा की, कुछ पैसे अनिल जुगाड़ कर ही चूका था, अनिल और भावना के लिए कपडे लिए गए, जितना जमा गहने लिए, बैंड - बाजा भी तय किया, एक दोस्त से मारुती कार मांग के ले आये, दोनों के साथ रहने के लिए पास में ही एक कमरा देख लिए, दोनों के हनीमून के लिए खजुराहो में होटल भी बुक कर लिए, शादी में गिफ्ट के नाम पर सबने अपनी अपनी पसंद की चीज़े दान कर दी, मेरे पास एक ब्लैक & व्हाइट टी वि था जिसपर हम सब कार्यक्रम देखते थे, वाही अनिल के रूम में लगवा दिया,
और वो दिन भी आया जब अनिल की बरात हमने अपने मित्र उमाशंकर चौरसिया जी के घर से निकाली, बारात छोटी ज़रूर थी, पर सड़क पर सब कुछ जाम हो गया था, जे पि ने पूरा बंदोबस्त किया था की बरात में नाचते वक़्त किसी को थकावट न आये, जिसे भी आये वो अपना गला तुरंत तर कर ले, पूरी शंकरजी की बरात थी, बार बार सर उचककर बरात में सबका ध्यान भी रख रहे थे की पता नहीं कहा से भावना का कोई पुराना अपना दिल न दुखा ले, और बरात में बम और देशी कट्ट्टे ले के घुस जाए, बहुत ही घबरा भी रहे थे, छोटी छोटी बाते होने पर दमोह में गलियों में येही सब चलते है, पर उपरवाले की दया और, अनिल की खुशकिस्मती की उस दिन सब कुछ अच्छा हुआ, बड़ी धूम धाम से शादी हुई, दोनों ने खजुराहो में अपना हनीमून मनाया, अगले कुछ दिनों तक उनका जीवन सुखमय ही बीता, शायद भावना माँ बननेवाली थी और अनिल का भी ट्रान्सफर शहडोल हो गया, और भावना को लेकर वह शहडोल चला गया , तब से अब तक हमारा कोई संपर्क नहीं है,
उम्मीद है और शुभ कामना है की अनिल और भावना खुश होंगे,
ek din

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

अधूरी दास्तान...


" तू चाँद था मेरी ज़मी का , तुझसे ही था जहां मेरा,
तुझसे ही थी खुशिया दिल की, तू ही था आसमा मेरा "
उसकी झंकार सी आवाज की खनक ... लगता है अभी अभी कानो में गूँज गई हो, यु की कही से कोई सदा आई हो जैसे....हवाओं में फैली खुशबू उसकी मौजूदगी का संदेह पैदा कर दिया करती है, कभी वो दिन थे की अल सुबह इंतज़ार होता था की कब उसे देख लू, और रात में तो ख्वाबो की कडिया न जाने कब से उसके अलावा और किसी के दीदार ही नहीं करा पाती थी। बस एक लम्हा सा था सतरंगा ... जब तक रहा बस होश न रहा । उसके सामने आते ही कमीनी एक ख़ामोशी सी फ़ैल जाती थी की जैसे सर्द बर्फ ने माहौल अपने आगोश में ले लिया हो, और बरसो से ज़मी हुई बर्फ के पिघलने की मै बस दुआ ही करता और ये मान बैठता की कमबख्त अब तो ये पल कभी न गुजरेगा, और बस कोई ..गिला न शिकवा...और न ही मुह से कोई बोल । दिल करता के अब बोलेगी तब, न वो कुछ कहती न दीवारे और न ही दरख़्त बोल पड़ते। और ऐसे ही ज़मी रही बर्फ सदियों तक !
वो सुनहरा वक़्त तो अब पारी - कथा सा हो चूका है । लेकिन अब भी रोम रोम में रोमांच और पागलपन भर देता है। मैंने उसे इक हवा सा पाया, जो मेरी जिंदगी में अपने आँचल में ताजगी भरी खुशबुए समेटे चली आयी...कुछ पल मुझे आगोश में भर ज़मी से ऊपर उड़ा ले गई, और मै अनमना सा ...ना समझा सा...उसके प्रभाव् में जैसे ख्वाबो की दुनिया में जा बसा था, लड़कपन की ये सुबह और शामे करवट बदलती ज़िन्दगी की निचे दबे रंगीन पन्नो से छूकर निकल गई है...
उसके कोमल हाथो को थामकर चले वो ज़िन्दगी के बेशकीमती पल, उसके पहलु में बैठकर बाते करना...साथ साथ खेले मासूम खेलो में उससे हार जाने के मौको की तलाश में रहना...वह भी मासूम सी मुस्कुराती हुई ...नज़रे झुकाकर बहुत कुछ कह जाने का वो कातिल अंदाज़ उसका , जैसे सब कुछ गजब था । मुझे नहीं याद की कभी कोई बात पर वो चाँद रूठ गया हो, नहीं कभी नहीं, तहजीब और हया के लिबास में लिपटी कोई कलि थी वो...तकदीर भी बहुत कम मौको में हमें मिला पाती थी। और जब मिलते तो लमहे तो बस लम्हों की तरह गुजर जाते और याद बरसो तक रह जाते।
किसी मंदिर में साथ कभी गए थे याद है...घंटियों की धुनों में मन उलझनों में बजता रहा...दिल ख़ुद से कह उठा था, भगवान् से...
" तुझसे कुछ और मांगने का अब हौसला नहीं होता मेरा....
जो मिला है उसी का रहेगा उम्र भर एहसान तेरा....."
उसकी हसरतो में ही मैंने अपने दिल की बाते कागज़ पर उतारनी शुरू कर दी थी...जो सिलसिला शुरू हुआ वो इस हद्द पर पहुंचा था की हम उम्र दोस्त तो पीछे ही पड़े रहते....और धीरे धीरे इसी सिलसिले ने अनजाने में मेरे लफ्जों को तराश दिया था । मुझे वो पल नहीं भूलता जब किसी ऐसी ही पुस्तक को उसने मुझसे पढ़ने मांग लिया था...और यु ही कह बैठा था की " कीमत लगेगी " इस पर रूठ बैठी मासूम पर किसी अपने ने ही जुल्म कर दिए थे..फिर भी शायद एक दो बार उसने पुस्तके पा ही ली थी। उसको हाले दिल ज़ाहिर कर ने के लिए कितनी कहानिया बना चूका था मै ...साथ में देखि हुई दो तीन फिल्मे तो उसने ही देखि थी , पुरे समय उसे ही देखता रहा था मै..दिल धड़कता रहा और मै धड़कनों को सुनता रहा।
" उस जूनून का मज़ा बेहिसाब है,जिसमे शोखियो का खुमार होता है
बस कुछ याद रहता नहीं सिर्फ नशा सा सवार होता है "
जैसे वो एक ख्वाब था जिसे उपरवाले ने करीने से सजाये हुए गुलदस्ते सा वहा रख दिया था। और फिर उस पर बुरी नज़र तो लगना लाज़मी था ही....नज़र भी ऐसी लगी की बरसो की पारिवारिक मिठास ज़हर की कडवाहट में बदल गई...और झुलस गया था मासूम सा मन....
लेकिन उसके जादू का असर ऐसा रहा है की बरसो पुरानी बाते पल भर पुराणी लगती है। दिल भी ऐसी गफलत पाले बैठा है के हवाए फिर से आयेंगी ...वही खुशबु लिए..... ।
बीते सालो में पास ही बहती इठलाती कन्हान की मस्तीभरी धाराओं ने कई मोड़ नए बना लिए है। कुछ जून दरख्तों ने ज़मी छोड़ दी है, और नए जवान हो गए कांटो भरे झुरमुट ने किनारों पे कब्ज़ा सा कर लिया है। इतने दिनों में सब कुछ बदला सा है...अब हवाए भी वो नहीं ..जिनसे खुश्बुओ का पता चलता... । इक समय अपनी मस्तियो और खुशियों से आबाद रहा वो चमन अपना ...एक शानदार टूटे हुए ख्वाब का अंजाम सा लग रहा है....अब अपनी गली से गुजरो तो दिखेगा की आशियाने भी ज़मींदोज़ हो गए दीखते है...बागीचे जो मशहूर थे अपनी बहारो के लिए...अब तो बर्बादी से पहचाने भी नहीं जाते...
अकेले कभी दिल सोचता है ....
"अपने आपको अब सारी उम्र की सजा दी है
ख़ुद अपने दामन में हमने आग लगा दी है'
अधूरी दास्तान दिलो में सुलग रही थी धीरे धीरे,
रुक रुक के शोलो को फिर से हवा दी है "


बुधवार, 15 सितंबर 2010

गपशप यहाँ वहा की ...



नागपुर शहर से १६ कि मी दुरी पर कामठी शहर है, ब्रिटिशो द्वारा अपनी सेनाओ के केम्प के रूप में इस शहर को इस्तेमाल किया जाता था । कन्हान नदी के तट पर बसे हुए ब्रिटिश कालीन कामठी फौजी छावनी को अब भारतीय थलसेना की सबसे गौरवशाली रेजिमेंट में से एक "ब्रिगेड ऑफ डी गार्ड्स " उपयोग करती है । यह देश की एकमात्र रेजिमेंट है जिसके वीर फौजियों ने २ परम वीर चक्र प्राप्त किये है , साथ ही नेशनल कैडेट कोर की ऑफिसर'स ट्रेनिंग अकेडमी जो की अपने तरह की एकमात्र है यहाँ पर है। काँटोंनमेंट क्षेत्र होने से पूरा माहौल नियंत्रित और अनुशाषित होता है , इस हरे भरे सुंदर नयनरम्य परिसर की गरिमामय सुन्दरता को यहाँ बस स्वयं घूमकर ही एहसास किया जा सकता है , इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है ... और जो यहाँ रहते थे और रहते है वो यहाँ की हवाओ में फैली खुशबु को कभी भूल नहीं पाए है और भूल भी नहीं सकते । धीरे धीरे यहाँ अब रहने वालो आम नागरिको की संख्या कम होती गई है और विशाल शानदार माल रोड के किनारे बसे सम्पन्न कोठियो और बंगलो की पूरी एक श्रंखला भी अब वैसी वैभवशाली नहीं रह गई दिखती है । छावनी क्षेत्र के दो छोरो पर स्तिथ है , १ गोरा बाज़ार और २ काली पलटन, जैसे की नाम से ही ज़ाहिर है अंग्रेजो ने अपनी आवश्यक वस्तु और सेवाओ की आपूर्ति हेतु गोरा बाज़ार बनवाया था जो की अब भी है , छोटी छोटी दुकान , लौंड्री कामगार, सफाई कर्मी , सेवादार, बावर्ची और अन्य सेवक लोगो को अंग्रेजो ने यहाँ बसा रखा था , इनके वर्तमान पीढ़ी के कुछ गिने चुने परिवार अब भी यहाँ रहते है। ज्यादातर लोग बदलते समय और विकास के साथ कामठी शहर के दुसरे मुख्य क्षेत्रो में जाकर रहने लगे है और कुछ स्थलांतर कर गए है । काली पलटन को भारतीय सैनिको के निवासी केम्प के रूप में जाना जाता था । अब यहाँ पर सैनिको के रहने के लिए शानदार और अच्छी श्रेणी के रूम्स बन चुके है, इस क्षेत्र के बड़े पोस्ट ऑफिस के पीछे बने मैदान पर क्रिकेट और होकी के शानदार मैच हुआ करते थे, शहर से लगे हुए दो विशाल मैदान जो की सेना के अधिकार क्षेत्र में है वे सामान्यतः उस ८० के काल में टेम्पल ग्राउंड और रब्बानी मैदान के नाम से जाने जाते थे ( अब तक मेरे द्वारा देखे गए किसी भी मैदान में ये सबसे व्यस्त और जानदार मैदान है ) इन मैदानों में उस समयकाल में सुबह और शाम के समय जितने युवा, बच्चे, बूढ़े और विभिन्न आय और आयु वर्ग के लोग एक साथ सैर का , खेलने का, पतंग उड़ाने का , दौड़ लगाने का , कराते और जुडो की प्रक्टिस करते हुए मैंने देखे है वो कही कभी नहीं देखे । कामठी को विदर्भा का ब्राज़ील कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी , फूटबाल के लिए देश के अनेको हुनरमंद खिलाडियों ने यहाँ से अपनी यात्राये शुरू की है , सुप्रसिद्ध और अजेय फूटबाल टीमो में रब्बानी क्लब , यंग इकबाल , न्यू ग्लोब जैसी टीमो से कामठी की शान देखते ही बनती है, बदलते समय में भी आज इन टीमो ने अपनी चमक लगातार बनाये रखी है ।

सभी आम कामठी वासियों का आपसी भाई चारे में बहुत गाढ़ा भरोसा है, अलग अलग धर्मो और जातियों के बीच वाद विवाद दुसरे शहरों की तुलना में नहीं के बराबर ही होते होंगे। इसी का यह उदहारण है की इस छोटे से शहर में अंग्रेजो के ज़माने के दो सुन्दर और विशाल चर्च आज भी ख्रिस्ती भाइयो के सबसे मुख्य केंद्र है , कुछ छोटे चर्च अब और बन गए है, मस्जिदों की पूरी ४० से भी ज्यादा संख्या मुसलमान भाइयो के भरोसे और स्थ्यित्व को दर्शाती है, जिसमे बड़ी मस्जिद १३० साल और कोलसाताल और शिया हैदरिया जामिया मस्जिद अब १०० साल से ज्यादा की हो चुकी है, कन्हान नदी के दूसरी तरफ बनी हुई " अम्मा की दरगाह " को सर्व धर्मं समभाव की निशानी है , जहा हमेशा लोगो का तांता लगा रहता है, बौध भाइयो के लिए देश की सुंदरतम निर्माणों में से एक " ड्रेगन टेम्पल " स्थानीय और बाहर के लोगो का तांता लगा रहता है , यहाँ आये सैलानियों की यह बहुत बड़ी दर्शनीय स्थली है । और अनेक बुध्द विहार आपको यहाँ मिल जायेंगे। और सबसे मुख्य और पुराने मंदिरों में " श्रीराम मंदिर " , कन्हान रोड पर स्तिथ " श्री साईनाथ मंदिर " कन्हान नदी के दूसरी तरफ (गोरा बाज़ार के पास ) पुरातन शिव मंदिर, सुप्रसिद्ध महादेव घाट पर " श्री हनुमान , श्री गणेश , शिव मंदिर , सभी हिन्दुओ की अखंड श्रद्दा की जागृत स्थली है । महादेव घाट के पास बने अन्ग्रेज्कालीन " कामठी क्लब " आज भी अपनी पुरानी आन और शान के साथ इतराता हुआ सा दीखता है । इसी क्षेत्र के पास एक विश्व स्तरीय खुबसूरत गोल्फ क्लब भी है।
छावनी क्षेत्र में पुराने और नामचीन स्कूलों की भरमार है , इनमे मध्य भारत के सबसे पुराने "मदर कॉन्वेंट " सेंट जोसेफ'स कॉन्वेंट का नाम सबसे पहले लिया जाता है, सेंट जोसेफ'स कॉन्वेंट का इतिहास बहुत ही चमत्कारिक और गौरवशाली है , इसके बारे में अलग से एक विवरण दूंगा, लडकियों के लिए रामकृष्ण मिसन द्वारा संचालित " स्कूल ऑफ होम साईंस " , केंद्रीय विद्यालय, छावनी हिंदी इंग्लिश स्कूल, आर्मी स्कूल, जैसे विशाल और प्रतिष्टित स्कूल की वजह से यह क्षेत्र शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन गया है, केंद्रीय विद्यालय के पास ही एक छोटा सा " छावनी अस्पताल " है , यही पर ४ फरवरी, १९७३ की सुबह मैंने जन्म लिया और इस खुबसूरत सी दुनिया को अपनी नज़रो से देखा, और कुछ चंद बहुत ही अच्छी किस्मत वालो की सूचि में शुमार हो गया जिनको यहाँ रहकर जीवन जीने का मौका मिला , सेंट जोसेफ'स की भाग्य बनाने वाली कक्षाओं में शिक्षा का अवसर मिला,